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|रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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<poem>
कितनी-कितनी भव्य किताबें
विश्व-भ्रमण में
मैंने कीं एकत्र
उफ़न रहीं पोथीख़ाने में
यहाँ-वहाँ सर्वत्र ।

लगता मुझे, कि विश्व स्वयं में ही है पोथी एक
ग़लत शीर्षक उसके अध्यायों पर लगे अनेक

ऐसे भी अध्याय, कि जिनकी वस्तु बहुत ही गर्हित
बाधित होता बुरी तरह से है जिनसे मानव-हित

सम्भव है क्या, दूर की जा सकें ये सब की सब त्रुटियाँ
लिखी जा सकें फिर से
इस पोथी की नव संशोधित प्रतियाँ ?

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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