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<poem>
"वतने दियाँ ठण्डियाँ छाईं, ओ यार !
टिक रहु थाईं, ओ यार !"
रोज़ी देवेगा सांईं, ओ यार !
टिक रहु थाईं, ओ यार !

हीर नूँ छड्ड टुर ग्युँ रञ्झेटे
खेड़्याँ दे घर पै गए हासे
पिण्ड विच कढ्ढी टौहर शरीकाँ
याराँ दे ढै पए मुण्डासे
वीराँ दियाँ टुट्ट गईआँ बाहीं, ओ यार !
टिक रहु थाईं, ओ यार !
रोज़ी देवेगा साँईं

काग उडावन मावाँ भैणाँ
तरले पावन लक्ख हज़ाराँ
ख़ैर मनावन संगी-साथी
चरख़े ओहले रोवन मुट्याराँ
हाड़ाँ करदियां सुंजियाँ राहीं, ओ यार !
टिक रहु थाईं, ओ यार !

वतने दियाँ ठण्डियाँ छाईं
छड्ड ग़ैराँ दे महल-चोमहले
अपने वेहड़े दी रीस ना काई
अपनी झोक दियाँ सत्ते ख़ैराँ
बीबा तुसाँ ने कदर ना पाई
मोड़ मुहाराँ
ते आ घर-बाराँ
मुड़ आ के भुल्ल ना जाईं, ओ यार !
टिक रहु थाईं, ओ यार !
</poem>
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