भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लिली मित्रा }} {{KKCatKavita}} <poem> '''1-अनकही''' म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लिली मित्रा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''1-अनकही'''
मन की जो बातें
कही ना जा सकीं वो
या तो आँसू बन गईं
या हँसी बन हवा में घुल गईं,
'शब्दों' से बस वे ही लिपटीं
जो 'दुनियादारी' की माँग रहीं
-0-
'''2-नदी'''
बहाव के भी कुछ नियम होते हैं
कुछ अल्प विराम,
कुछ विराम ,
एक नई शुरूआत
और
इन तीनों पड़ावों के
बीच का अंतराल
खूबसूरती से पाटकर
जिसने सतत
प्रवाह का दृश्य
खींच दिया
वही जीवन
'नदी' बन गया
-0-
'''3- छलावा'''
स्लेटी फाहों से
ढक कर
मन का गगन
ज़मीन को सावन का
छलावा ना दो
-0-
'''4-धूप'''
ज़रा- ज़रा -सा छनकर
आ जाया करो
घने जंगलों से
इतनी सी धूप बहुत है
ज़मीन का बदन
सुखाने के लिए
-0-
5-समाधान की समस्याएँ'''
'''
'समाधान' की भी 'समस्याएँ' होतीं हैं
मन भारी होता है
आँखें भर आती हैं
यह सोचकर
कि- कोई तो होगा जो उसकी समस्या का 'समाधान' बने?
ताकि वो भी चिड़िया की के छैनी जैसी
चोंच खोल दाना लेने के लिए
उचक-फुदक करने का
सुख पा सके।
-0-
<poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=लिली मित्रा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''1-अनकही'''
मन की जो बातें
कही ना जा सकीं वो
या तो आँसू बन गईं
या हँसी बन हवा में घुल गईं,
'शब्दों' से बस वे ही लिपटीं
जो 'दुनियादारी' की माँग रहीं
-0-
'''2-नदी'''
बहाव के भी कुछ नियम होते हैं
कुछ अल्प विराम,
कुछ विराम ,
एक नई शुरूआत
और
इन तीनों पड़ावों के
बीच का अंतराल
खूबसूरती से पाटकर
जिसने सतत
प्रवाह का दृश्य
खींच दिया
वही जीवन
'नदी' बन गया
-0-
'''3- छलावा'''
स्लेटी फाहों से
ढक कर
मन का गगन
ज़मीन को सावन का
छलावा ना दो
-0-
'''4-धूप'''
ज़रा- ज़रा -सा छनकर
आ जाया करो
घने जंगलों से
इतनी सी धूप बहुत है
ज़मीन का बदन
सुखाने के लिए
-0-
5-समाधान की समस्याएँ'''
'''
'समाधान' की भी 'समस्याएँ' होतीं हैं
मन भारी होता है
आँखें भर आती हैं
यह सोचकर
कि- कोई तो होगा जो उसकी समस्या का 'समाधान' बने?
ताकि वो भी चिड़िया की के छैनी जैसी
चोंच खोल दाना लेने के लिए
उचक-फुदक करने का
सुख पा सके।
-0-
<poem>