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हमारा प्रेम / रूपम मिश्र

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प्रेम से पहले हम छुटपन में अचानक धूल में चमके अरुआ - परुआ पैसे की तरह मिले थे
और खगोल दुनिया के खुलते रहस्य की तरह होतीं थीं हमारी बातें

देखा हमने एकदूसरे को बहुत दिनों बाद
लेकिन ऐसे नहीं, जैसे सौन्दर्य प्रेमियों ने चाँद को देखा

हमने देखा एक - दूसरे को ऐसे, जैसे
भूख की यातना में जिया मनुष्य रोटी को देखता हो
जैसे देखता हो दुख में बीता अतीत सुख के आसार को
जबकि आगत वहीं खड़ा दिखता रहता है उदास अनमना हारा सा ।
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