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वाकई डी एम मिश्र गजल के प्रति अपनी अंतर्निष्ठा और प्रतिश्रुति का इजहार अपनी गजल के एक शेर के जरिये ही करते हैं कि “ गजल मेरी ताकत है , गजल ही जुनूँ है / जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं "
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