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दिल को अपने दीप बना दो, और प्रेम को बाती
सच कहता हूं फिर देखो रोशनी कहां तक जाती
मुट्ठी भर उजियारा है, बाकी घनघोर अंधेरा
दूर अंधेरा करने को हर साल दिवाली आती
 
सिर्फ़ अमीरों के घर पर ही डेरा डाले बैठी
काश, लक्ष्मी निर्धन के भी घर में खुशियां लाती
 
मेरे घर आयी दीवाली लेकिन भूखी-प्यासी
उनके घर आयी दीवाली मदिरालय छलकाती
 
दीवाली में दीवाला, दीवाले में दीवाली
बाहर खड़ी लक्ष्मी घर के मन ही मन मुस्काती
 
रस्म निभाने की चिंता कितनी उस बुढ़िया को है
घर में भूंजी भांग नहीं पर घी के दीप जलाती
 
अपने भीतर के अंधियारे से भी लड़ना सीखो
दीवाली हर साल यही संदेशा लेकर आती
 
इससे बढकर और दूसरा पर्व कोई बतलाओ
मेरी बेटी खील - बताशे लेकर घर - घर जाती
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