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दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था
जिस तरह यह पेड़ सूखा कल हरा था
उससे कैसे ज़िन्दगी की बात करता
वो तो बुज़दिल वक़्त से पहले मरा था
फिर बनावट की उसे क्या थी ज़रूरत
जब वो कुंदन की तरह बिल्कुल खरा था
हां में हां उसकी मिलाता था कभी
तब मगर किरदार उसका दूसरा था
ख़ौफ़ में हर आदमी था जी रहा , पर
मुझको सत्कर्मों का अपने आसरा था
क्या पता फिर कैसा वो क़ानून लाये
देश का हर आदमी उससे डरा था
लोग चिल्लाकर अचानक हो गये चुप
समझ में आया नहीं क्या माजरा था
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