भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उनको फ़ुरसत जो नहीं , मुझको ज़रूरत भी नहीं
अपनी इज़्ज़त से बड़ी है कोई दौलत भी नहीं
जो न बोले , न सुने, काम न आये अपने
ऐसे पत्थर की कभी करता इबादत भी नहीं
कोई अपना न सगा है , न पराया कोई
कोई उल्फ़त भी नहीं , कोई अदावत भी नहीं
हम बदल पायेंगे खुद को नहीं मुमकिन शायद
तुम बदल खुद को लो ऐसी कोई सूरत भी नहीं
दिल को अच्छी तरह समझा लिया है चुपके से
कोई हसरत भी नहीं , कोई शिकायत भी नहीं
आंसुओं से मेरा सम्बन्ध बहुत गहरा है
बेवजह हंसने , हंसाने की यूं आदत भी नहीं
अब चलो और कहीं , और कहीं ,और कहीं
उनसे मिलने के लिए सबको इजाज़त भी नहीं
</poem>