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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
जाएगी
लहरों पर तिरती
इस छोर से,
उस छोर तक
पालों वाली नाव ।

नहीं लुभाती
नभ की बातें
अब न तारों की मुस्कान
कहाँ पहुँचकर
मिट पाएगी
तन की, मन की यह थकान
दुखने लगते पाँव ।

कितने
आशीर्वाद भुलाकर
सदा झेले
हैं अभिशाप,
शीतल छाया
हमने बाँटी
सहा अपने
सिर पर ताप ।
झेले सभी अभाव ।
-0-(20/3/91-केरल भारती जनवरी 93)
</poem>