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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना<br>
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना<br><br>
ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये<br>
सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना<br><br>
तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये वक्त आ पहुँचा<br>
कि अब तो चारागरों का भी हाथ मल जाना<br><br>
अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी<br>
हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना<br><br>
सजी सजाई हुई मौत ज़िन्दगी तो नहीं<br>
मुअर्रिखों ने मकाबिर को भी महल जाना<br><br>
ये क्या कि तू भी इसी साअते-जवाल में है<br>
कि जिस तरह है सभी सूरजों को ढल जाना<br><br>
हर इक इश्क के बाद और उसके इश्क के बाद<br>
फ़राज़ इतना आसाँ भी ना था संभल जाना<br><br>

'''शोलगी''' - अग्नि ज्वाला, '''मुअर्रिख''' - इतिहास कार<br>
'''मकाबिर''' - कब्र का बहुवचन, '''साअते-जवाल''' - ढलान का क्षण
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