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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

हम सुनायें तो कहानी और है<br>
यार लोगों की जुबानी और है<br><br>
चारागर रोते हैं ताज़ा ज़ख्म को<br>
दिल की बीमारी पुरानी और है<br><br>
जो कहा हमने वो मजमूँ और था<br>
तर्जुमाँ की तर्जुमानी और है<br><br>
है बिसाते-दिल लहू की एक बूंद<br>
चश्मे-पुर-खूं की रवानी और है<br><br>
नामाबर को कुछ भी हम पैगाम दें<br>
दास्ताँ उसने सुनानी और है<br><br>
आबे-जमजम दोस्त लायें हैं अबस<br>
हम जो पीते हैं वो पानी और है<br><br>
सब कयामत कामतों को देख लो<br>
क्या मेरे जानाँ का सानी और है<br><br>
अहले-दिल के अन्जुमन में आ कभी<br>
उसकी दुनिया यार जानी और है<br><br>
शाइरी करती है इक दुनिया फ़राज़<br>
पर तेरी सादा बयानी और है<br><br>

'''चश्मे-पुर-खूं''' - खून से भरी हुई आँख<br>
'''आबे-जमजम''' - मक्के का पवित्र पानी<br>
'''अबस''' - बेकार, '''सानी''' - बराबर, दूसरा<br>
'''कामत''' - लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)<br>
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