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<poem>
सॉनेट — 27
 
निर्वस्त्र, तुम हो सहज अपने हाथों में एकसी,
स्निग्ध, धरा-सी, नन्हीं, पारदर्शी, वृत्ताकार :
तुम्हारे पास हैं चन्द्रमा की लकीरें, सेब — गलियारे
निर्वस्त्र, तुम हो छरहरी एक गेहूँ के दाने सी ।
 
निर्वस्त्र, तुम हो क्यूबा की एक नीली रात्रि - सी;
तुम्हारे केशों में हैं लताएँ और सितारे;
निर्वस्त्र, तुम हो विस्तृत और पीतवर्णी
जैसे सुनहरे गिरजाघर में ग्रीष्म - ऋतु ।
 
निर्वस्त्र, तुम हो सूक्ष्म अपने नखों में एक सी —
घुमावदार, कोमल, गुलाबी दिवस के प्रारम्भ होने तक
और तुम लौट जाती हो पाताललोक को,
 
मानो वस्त्रों और कार्यों की लम्बी सुरंग के नीचे :
तुम्हारा स्पष्ट प्रकाश होता है मन्द, पहनता पोशाक — गिराता अपनी पत्तियाँ —
और पुनः हो जाता है एक निर्वस्त्र हाथ ।
 
 
क्यूबा — एक देश का नाम ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''
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