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मत रहो चुप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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04:03, 28 दिसम्बर 2022
मत रहो चुप
मुखारविन्द से
'''
दो शब्द बोलो।
'''
यह किरन
यह तुम्हारे उर की खुशबू
दिल न तोड़ो
'''प्यार घोलो।'''
यह तुम्हारी ही कृति
कुछ तो बोलो
सागर- सा मन तुम्हारा
'''
उठो उसके द्वार खोलो।
'''
-0-
</poem>
वीरबाला
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