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मुनादी / कुमार अंबुज

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|संग्रह=क्रूरता / कुमार अंबुज
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<poem>
<small>[महेश दत्त के लिए]</small>

मैं भरा-पूरा परिवार रखता हूँ
मैं एक अनाथ लड़का हूँ

लोगों से बात करता हूँ
जैसे जेल की दीवार के पत्थरों से
मैं बहुत पुरानी जलरंग की तसवीर हूँ
एक धूल खाया सितार
मुझे देखो
मुझे छुओ

मैं एक अनाथ लड़का हूँ

कोई दोस्त कोई नागरिक कोई संबंध
कोई प्रेम पृथ्वी पर ऐसा नहीं
जिसने मुझे नए सिरे से अनाथ न बनाया हो
मैं किसी लोककथा का टूटा हुआ पहला वाक्य हूँ

बिना ढोल बजाए
मैं आपकी गली आपके द्वार से गुज़रूँगा
मेरी आँखें शर्म से नीची नहीं होंगी
दिल में उम्मीद होगी
मेरी उत्सुकता से पहचानना मुझे
भरा-पूरा परिवार रखता हुआ
मैं एक अनाथ लड़का हूँ

मुझे सबसे पहले
अपने ही घर में खोजना।
</poem>
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