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सॉनेट — 26
वन में खोकर मैंने तोड़ा एक अन्धेरी शाख को
और उठा लिया उसकी फुसफुसाहट को अपने तृषित अधरों तक :
सम्भवतः यह स्वर था रुदन करती वर्षा का,
एक चटखी घण्टी का या एक भग्न हृदय का ।
कहीं सुदूर से कुछ : ऐसा हुआ प्रतीत
धरा द्वारा छुपाया गया, गहरा और पवित्र मेरे लिए,
विशाल पतझड़ों, भीगी अधखुली पत्तियों के तमस में
घोंटी गई चीख़ ।
वहाँ स्वप्नरत वन से जागते हुए, बसन्त
लगा गाने मेरी जिव्हा पर, उसकी तैरती सुगन्ध
चढ़ गई मेरे जाग्रत मस्तिष्क तक
मानो अकस्मात चीख़ी हों जड़ें मुझपर, जिन्हें
मैं छोड़ चुका था पीछे, धरा जिसे छोड़ दिया था शैशव में
और मैं ठहर गया भटकती हुई गन्ध से घायल होकर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''