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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बलिष्ठ हैं
तटबंध की भुजाएँ
यह कहना -
उतना ही झूठ है
जितना यह -
कि सूरज ने
उगने को मनाही कर दी
बादल हों; भिन्न विषय है
ठीक वैसे ही
नदी तय सीमा में
बह रही है
इसका यह अर्थ कदापि नहीं
कि तटबंध बलवान हैं
धन्यवाद कहो नदी को
कि वह संलग्न है
कर्त्तव्य- निर्वाह में
और अनुशासित है;
लेकिन युगधर्म है कि
नदी का अनुशासन
मान लिया गया सदियों से
उसकी दीनता का प्रतीक,
और तटों को
दे दिया गया
अधिकार बाँधे रखने का
अकारण ही
है ना दुराग्रह और धृष्टता!!
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
बलिष्ठ हैं
तटबंध की भुजाएँ
यह कहना -
उतना ही झूठ है
जितना यह -
कि सूरज ने
उगने को मनाही कर दी
बादल हों; भिन्न विषय है
ठीक वैसे ही
नदी तय सीमा में
बह रही है
इसका यह अर्थ कदापि नहीं
कि तटबंध बलवान हैं
धन्यवाद कहो नदी को
कि वह संलग्न है
कर्त्तव्य- निर्वाह में
और अनुशासित है;
लेकिन युगधर्म है कि
नदी का अनुशासन
मान लिया गया सदियों से
उसकी दीनता का प्रतीक,
और तटों को
दे दिया गया
अधिकार बाँधे रखने का
अकारण ही
है ना दुराग्रह और धृष्टता!!
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