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|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
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<Poem>
पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन
जो भी है जनता की रोटी है न्याय
दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब चहुँओर
जब स्वादहीन होती है तब फैलती है असन्तुष्टि

कूड़े में डाल दो व्यर्थ के न्याय को
जो न प्रेम से भूना, न समझदारी से गूँथा गया
गन्धहीन, पपड़ाया और धूमिल न्याय
बासे व्यंजन-सा जो देरी से मिला हो
स्वादिष्ट और भरपूर रोटी मिले तो
शेष व्यंजन पर विचार नहीं किया जाएगा
कोई भी तृप्त हो सकता है इनसे

न्याय-रोटी से मिलता है ऐसा काम
जो हो यथेष्ट या कहें कि पर्याप्त

आवश्यक होती है रोटी हर रोज़ इस भाँति
बल्कि दिन में कई मर्तबा
भोर से देर रात्रि तक
कामकाज का लेते हुए आनन्द
अच्छे-बुरे और सुख-दुख भरे दिनों में
हर दिन चाहिए पौष्टिक; न्याय की रोटी
इतनी अहमियत है न्याय की रोटी की
अब सवाल उठता है कि कौन बनाएगा इसे ?
बतलाइए कि दूसरी रोटी कौन पकाता है ?

दूसरी रोटी की भाँति न्याय की रोटी भी
पकाएगी जनता ही
जो सबके लिए पौष्टिक होगी
और सबको प्रत्येक दिन मिलेगी !

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''

'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''
Bertolt Brecht
THE BREAD OF THE PEOPLE

Justice is the bread of the people
Sometimes is plentiful, sometimes it is scarce
Sometimes it tastes good, sometimes it tastes bad.
When the bread is scarce, there is hunger.
When the bread is bad, there is discontent.

Throw away the bad justice
Baked without love, kneaded without knowledge!
Justice without flavour, with a grey crust
The stale justice which comes too late!

If the bread is good and plentiful
The rest of the meal can be excused.
One cannot have plenty of everything all at once.
Nourished by the bread of justice
The work can be achieved
From which plenty comes.

As daily bread is necessary
So is daily justice.
It is even necessary several times a day.

From morning till night, at work, enjoying oneself.
At work which is an enjoyment.
In hard times and in happy times
The people requires the plentiful, wholesome
Daily bread of justice.

Since the bread of justice, then, is so important
Who, friends, shall bake it?

Who bakes the other bread?

Like the other bread
The bread of justice must be baked
By the people.

Plentiful, wholesome, daily.
</Poem>
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