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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
ज़िन्दगी-भर एक ही व्यायाम
सौंपते रहना सुबह को शाम !

चारपाई छोड़ना
ख़ुद जेब दुहना
चाय-चीनी के बिना भी
चाय होना
जल छिड़क
कंघा फिराते खोपड़ी में
घुड़घुड़ाना बाल-बच्चों को
घिसी चप्पल पहनना
और देहरी लाँघ
ख़ाली हाथ घर की लच्छमी को
सिर्फ कहना —

देखना, करना ज़रा आराम !

दफ़्तरों से
छूटना
लदना बसों में
और फिर
हारे-थके घर में बदलना
सन्न हो जाना समय का
रात-भर को
और फिर
दिन-भर वही फ़ाइल उलटना

बाँध रख आना वहीं फिर काम !

30-4-1976
</poem>
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