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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
ज़िन्दगी-भर एक ही व्यायाम
सौंपते रहना सुबह को शाम !
चारपाई छोड़ना
ख़ुद जेब दुहना
चाय-चीनी के बिना भी
चाय होना
जल छिड़क
कंघा फिराते खोपड़ी में
घुड़घुड़ाना बाल-बच्चों को
घिसी चप्पल पहनना
और देहरी लाँघ
ख़ाली हाथ घर की लच्छमी को
सिर्फ कहना —
देखना, करना ज़रा आराम !
दफ़्तरों से
छूटना
लदना बसों में
और फिर
हारे-थके घर में बदलना
सन्न हो जाना समय का
रात-भर को
और फिर
दिन-भर वही फ़ाइल उलटना
बाँध रख आना वहीं फिर काम !
30-4-1976
</poem>
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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
ज़िन्दगी-भर एक ही व्यायाम
सौंपते रहना सुबह को शाम !
चारपाई छोड़ना
ख़ुद जेब दुहना
चाय-चीनी के बिना भी
चाय होना
जल छिड़क
कंघा फिराते खोपड़ी में
घुड़घुड़ाना बाल-बच्चों को
घिसी चप्पल पहनना
और देहरी लाँघ
ख़ाली हाथ घर की लच्छमी को
सिर्फ कहना —
देखना, करना ज़रा आराम !
दफ़्तरों से
छूटना
लदना बसों में
और फिर
हारे-थके घर में बदलना
सन्न हो जाना समय का
रात-भर को
और फिर
दिन-भर वही फ़ाइल उलटना
बाँध रख आना वहीं फिर काम !
30-4-1976
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