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चुटकियों से / रामकुमार कृषक

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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
चुटकियों से
चुटकियों के वास्ते ही तो
फिसलना है
हमें क्या और मिलना है !

ऐश होने के लिए हैं
हम
कैश होने के लिए भी हैं,

आदमी की नस्ल नावाक़िफ नहीं
पर गिरेबाँ चाक उसका
रोज़ सिलना है !

दस्तख़त सबके लिए हैं
हम
सिर्फ़ अपने ही लिए कोरे,

कागज़ी अहवाल नावाक़िफ नहीं
बिन खिले-मुरझे हमें ही
रोज़ खिलना है !

21-3-1976
</poem>
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