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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
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<poem>
सीट के ऊपर नहीं हैं
सा’ब
सोफ़े पर जमे हैं
और उन तक पहुँच पाएँ आप...
तौबा !
आदमी हो आप
अफ़सर वे
बिज़ी हैं
जान बेशक एक
पर सबके निजी हैं,
हाथ पैमाना नहीं
लो नाप...
तौबा !
ख़्वाब में हैं आप
वे
सोए नहीं हैं
खोजते ईमान
खुद खोए नहीं हैं,
सुन सकोगे
हो रहा जो जाप...
तौबा !
11-9-1976
</poem>
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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
सीट के ऊपर नहीं हैं
सा’ब
सोफ़े पर जमे हैं
और उन तक पहुँच पाएँ आप...
तौबा !
आदमी हो आप
अफ़सर वे
बिज़ी हैं
जान बेशक एक
पर सबके निजी हैं,
हाथ पैमाना नहीं
लो नाप...
तौबा !
ख़्वाब में हैं आप
वे
सोए नहीं हैं
खोजते ईमान
खुद खोए नहीं हैं,
सुन सकोगे
हो रहा जो जाप...
तौबा !
11-9-1976
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