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धिना-धिन ... / रामकुमार कृषक

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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
धिना-धिन...
धिना-धिन ताक धिना-धिन
धिना-धिन...धिना-धिन...ताक...

कठपुतली नाचो
दुनिया को जाँचो
धिना-धिन...
धिना-धिन ताक धिना-धिन
धिना-धिन...धिना-धिन...ताक...

सूत्र बँधी तू...
हाथ के सहारे है
पेट के पुकारे है
मंच ये तुम्हारा है
लंच ये हमारा है
निवाले गिन ––
धिना-धिन...धिना-धिन...ताक...

रंग-रूप क्या–––
शान ही निराली है
घर है घरवाली है
लोक ये तुम्हारा है
तंत्र ये हमारा है
निराले दिन ––
धिना-धिन...धिना-धिन...ताक...

5-10-1976
</poem>
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