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{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
आदमी ख़ाली
बड़ी गाली
जो इसको वक़्त देता है !
मत घुसो यों
खोपड़ी से
रीढ़ में इसकी
न नापो पेट
सहने दो,
ये ठण्डी साँस
माथे की लकीरें
ढपलियों का ढोंग
रहने दो
इसे हर रोज़ दहने दो,
गालियाँ क्या
गोलियाँ जब झेल जाएगा
उठेगा / आग होगा
वक़्त से आँखें मिलाएगा,
और जब यों
आदमी
करवट बदलता है
सज़ाएँ सख़्त देता है !
5-10-1976
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
आदमी ख़ाली
बड़ी गाली
जो इसको वक़्त देता है !
मत घुसो यों
खोपड़ी से
रीढ़ में इसकी
न नापो पेट
सहने दो,
ये ठण्डी साँस
माथे की लकीरें
ढपलियों का ढोंग
रहने दो
इसे हर रोज़ दहने दो,
गालियाँ क्या
गोलियाँ जब झेल जाएगा
उठेगा / आग होगा
वक़्त से आँखें मिलाएगा,
और जब यों
आदमी
करवट बदलता है
सज़ाएँ सख़्त देता है !
5-10-1976
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