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|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
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<poem>
हर फ़सल चालाकियों की
आज की खेती !

स्वारथों के खेत
अनगिन
चापलूसी मेह
किसलिए हल-बैल-मेहनत
क्यों कसीली देह,

देह की बारीकियों की
आज की खेती !

तिकड़मों के बीज
उन्नत
यारबासी खाद
चुटकियों से उग रही यों
कागज़ी औलाद,
बाप से बेबाकियों की
आज की खेती !

7-10-1976
</poem>
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