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{{KKRachna
|रचनाकार=दऊर ज़नतारिया
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अद्गूर इनाल-इल की याद में
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ हूँ । कोई मेरी
बाट नहीं जोहता, मुझे याद नहीं करता ।
दिन छुपने जा रहा है, मैं हलकी ठिठुरन से
भरा हूँ ।
भीगी-नम हवा में नीरवता छाई है
आकाश इतना नीचे झुक गया है
कि हाथ बढ़ाकर तारे तोड़ सकता हूँ
बिना किसी खतरे के ।
और ऐसा लग रहा है कि जैसे
कोई लड़ाई नहीं चल रही, मैं बेघर भी नहीं हूँ
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ हूँ, जैसे
मुझसे पहले भी बैठते थे लोग
अब नदी नहीं बहती, अब समय नहीं रिसता ।
चालीस बरस का हो गया हूँ, और मैं यह बात समझता हूँ ...
तभी तो ख़ुद से कहता हूँ : ये साल बीत जाने दो —
अभी दूसरों को बोलने दो
मैं, भला, क्या जानूँ ? मैं बैठा हूँ यहाँ
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे ।
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए'''
Даур Зантария
Под вязами
Памяти Адгура Инал-Ипа
Сижу под вязами. Никто меня
Не ждет, не помнит.
И тихим трепетом я на исходе дня
Наполнен.
Во влажном воздухе разлит покой.
Так небо низко,
Что до звезды достать рукой
Могу без риска.
И будто нет войны, и не бездомен я
На самом деле,
Сижу под вязами, как прежде до меня
Сидели.
И не течет река. И время не течет.
Мне сорок лет. Я отдаю себе отчет...
И так я говорю: пускай года пройдут —
Другие выразить обязаны,
О чем я ведал, сидя тут
Под вязами.
</poem>
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|रचनाकार=दऊर ज़नतारिया
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
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<poem>
अद्गूर इनाल-इल की याद में
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ हूँ । कोई मेरी
बाट नहीं जोहता, मुझे याद नहीं करता ।
दिन छुपने जा रहा है, मैं हलकी ठिठुरन से
भरा हूँ ।
भीगी-नम हवा में नीरवता छाई है
आकाश इतना नीचे झुक गया है
कि हाथ बढ़ाकर तारे तोड़ सकता हूँ
बिना किसी खतरे के ।
और ऐसा लग रहा है कि जैसे
कोई लड़ाई नहीं चल रही, मैं बेघर भी नहीं हूँ
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ हूँ, जैसे
मुझसे पहले भी बैठते थे लोग
अब नदी नहीं बहती, अब समय नहीं रिसता ।
चालीस बरस का हो गया हूँ, और मैं यह बात समझता हूँ ...
तभी तो ख़ुद से कहता हूँ : ये साल बीत जाने दो —
अभी दूसरों को बोलने दो
मैं, भला, क्या जानूँ ? मैं बैठा हूँ यहाँ
वनचिल्ली के पेड़ के नीचे ।
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए'''
Даур Зантария
Под вязами
Памяти Адгура Инал-Ипа
Сижу под вязами. Никто меня
Не ждет, не помнит.
И тихим трепетом я на исходе дня
Наполнен.
Во влажном воздухе разлит покой.
Так небо низко,
Что до звезды достать рукой
Могу без риска.
И будто нет войны, и не бездомен я
На самом деле,
Сижу под вязами, как прежде до меня
Сидели.
И не течет река. И время не течет.
Мне сорок лет. Я отдаю себе отчет...
И так я говорю: пускай года пройдут —
Другие выразить обязаны,
О чем я ведал, сидя тут
Под вязами.
</poem>