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{{KKRachna
|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
सम्पन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश
गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा
लालन-पालन कर मुझे किया बड़ा
मुझे सिखाया गया कि मैं दूसरों पर हुक़्म तारी करूँ
और मैं रौब जमाऊँ उन पर
किन्तु जैसे हुआ मैं समझदार
मुझे परिजन नहीं भाये
अच्छा नहीं लगा परिवार
खिदमत कराना, हुक्म देना, मुझे नहीं भाता
मैं निम्न श्रेणी के
लोगों में रमता अपनों से तोड़ नाता
एक विश्वासघाती को पाला इस भाँति
उन्होंने मुझे बनाया था एक चालबाज
जबकि खोल दिए मैंने शत्रुओं पर उनके राज़
जी हाँ, मैं खोल देता हूँ उनके राज़
कर देता हूँ उनकी ठगी का पर्दाफाश
क्या होने वाला है; यह बता देता हूँ पहले ही
जानकारी रखता हूँ योजनाओं की अन्दरूनी
उनके भ्रष्ट विद्वान की संस्कृत बदल देता हूँ शब्दशः
आमफहम भाषा में दिखा देता हूँ उनकी गीता अक्षरशः
इनसाफ़ के तराजू पर कैसे डंण्डी मारते हैं, बता देता हूँ
और उनके मुख़बिर उन्हें ख़बर देते हैं कि
जब क्रान्ति की योजना बन रही होती है
तब मैं वहीं रहता हूँ मौजूद
चेतावनी दी थी उन्होंने मुझे
और जो कुछ कमाया था मैंने
उनके छिन जाने पर भी जब मैं ना माना
तब गिरफ़्तार करने आए वे मुझे
यद्यपि उन्हें कुछ न मिला मेरे घर से
उन पर्चों के अतिरिक्त जिनमें
जनता के खिलाफ़ उनकी करतूतें थीं
अतः मेरा वारंट जारी किया उन्होंने आनन-फानन
मैं तुच्छ विचारों का हूँ -ऐसा आरोप लगाया
यानी तुच्छ लोगों के विचार; यह आशय
जहाँ-जहांँ भी मैं जाता धनाढ्यों को अखरता
लेकिन उनमें जो होते ख़ाली हाथ वाले
वह मेरा ही वारण्ट पढ़कर मुझे पनाह देते
कि यह अच्छी वजह से निष्कासित हुआ व्यक्ति है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''
'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''
Bertolt Brecht
Driven Out with Good Reason
I grew up as the son
Of well-to-do people. My parents put
A collar round my neck and brought me up
In the habit of being waited on
And schooled me in the art of giving orders. But
When I was grown up and looked about me
I did not like the people of my own class
Nor giving orders, nor being waited on
And I left my own class and allied myself
With insignificant people.
Thus
They brought up a traitor, taught him
All their tricks, and he
Betrays them to the enemy.
Yes, I give away their secrets. I stand
Among the people and explain
Their swindles. I say in advance what will happen, for I
Have inside knowledge of their plans.
The Latin of their corrupt clergy
I translate word for word into the common speech, and there
It is seen to be humbug. The scales of their justice
I take down so as to show
The fraudulent weights. And their informers report to them
That I sit among the dispossessed when they
Are plotting rebellion.
They sent me warnings and they took away
What I had earned by my work. And when I failed to reform
They came to hunt me down; however
They found
Nothing in my house but writings which exposed
Their designs on the people. So
They made out a warrant against me
Which charged me with having low opinions, that is
The opinions of the lowly.
Wherever I go I am branded
In the eyes of the possessors, but those without possessions
Read the charge against me and offer me
Somewhere to hide. You, they tell me
Have been driven out with
Good reason.
</Poem>
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|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
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सम्पन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश
गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा
लालन-पालन कर मुझे किया बड़ा
मुझे सिखाया गया कि मैं दूसरों पर हुक़्म तारी करूँ
और मैं रौब जमाऊँ उन पर
किन्तु जैसे हुआ मैं समझदार
मुझे परिजन नहीं भाये
अच्छा नहीं लगा परिवार
खिदमत कराना, हुक्म देना, मुझे नहीं भाता
मैं निम्न श्रेणी के
लोगों में रमता अपनों से तोड़ नाता
एक विश्वासघाती को पाला इस भाँति
उन्होंने मुझे बनाया था एक चालबाज
जबकि खोल दिए मैंने शत्रुओं पर उनके राज़
जी हाँ, मैं खोल देता हूँ उनके राज़
कर देता हूँ उनकी ठगी का पर्दाफाश
क्या होने वाला है; यह बता देता हूँ पहले ही
जानकारी रखता हूँ योजनाओं की अन्दरूनी
उनके भ्रष्ट विद्वान की संस्कृत बदल देता हूँ शब्दशः
आमफहम भाषा में दिखा देता हूँ उनकी गीता अक्षरशः
इनसाफ़ के तराजू पर कैसे डंण्डी मारते हैं, बता देता हूँ
और उनके मुख़बिर उन्हें ख़बर देते हैं कि
जब क्रान्ति की योजना बन रही होती है
तब मैं वहीं रहता हूँ मौजूद
चेतावनी दी थी उन्होंने मुझे
और जो कुछ कमाया था मैंने
उनके छिन जाने पर भी जब मैं ना माना
तब गिरफ़्तार करने आए वे मुझे
यद्यपि उन्हें कुछ न मिला मेरे घर से
उन पर्चों के अतिरिक्त जिनमें
जनता के खिलाफ़ उनकी करतूतें थीं
अतः मेरा वारंट जारी किया उन्होंने आनन-फानन
मैं तुच्छ विचारों का हूँ -ऐसा आरोप लगाया
यानी तुच्छ लोगों के विचार; यह आशय
जहाँ-जहांँ भी मैं जाता धनाढ्यों को अखरता
लेकिन उनमें जो होते ख़ाली हाथ वाले
वह मेरा ही वारण्ट पढ़कर मुझे पनाह देते
कि यह अच्छी वजह से निष्कासित हुआ व्यक्ति है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''
'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''
Bertolt Brecht
Driven Out with Good Reason
I grew up as the son
Of well-to-do people. My parents put
A collar round my neck and brought me up
In the habit of being waited on
And schooled me in the art of giving orders. But
When I was grown up and looked about me
I did not like the people of my own class
Nor giving orders, nor being waited on
And I left my own class and allied myself
With insignificant people.
Thus
They brought up a traitor, taught him
All their tricks, and he
Betrays them to the enemy.
Yes, I give away their secrets. I stand
Among the people and explain
Their swindles. I say in advance what will happen, for I
Have inside knowledge of their plans.
The Latin of their corrupt clergy
I translate word for word into the common speech, and there
It is seen to be humbug. The scales of their justice
I take down so as to show
The fraudulent weights. And their informers report to them
That I sit among the dispossessed when they
Are plotting rebellion.
They sent me warnings and they took away
What I had earned by my work. And when I failed to reform
They came to hunt me down; however
They found
Nothing in my house but writings which exposed
Their designs on the people. So
They made out a warrant against me
Which charged me with having low opinions, that is
The opinions of the lowly.
Wherever I go I am branded
In the eyes of the possessors, but those without possessions
Read the charge against me and offer me
Somewhere to hide. You, they tell me
Have been driven out with
Good reason.
</Poem>