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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया<br>
जब कि खुद पत्थर को बुत, बुत को खुदा मैंने किया<br><br>
कैसे नामानूस लफ़्ज़ों कि कहानी था वो शख्स<br>
उसको कितनी मुश्किलों से तर्जुमा मैंने किया<br><br>
वो मेरी पहली मोहब्बत, वो मेरी पहली शिकस्त<br>
फिर तो पैमाने-वफ़ा सौ मर्तबा मैंने किया<br><br>
हो सजावारे-सजा क्यों जब मुकद्दर में मेरे<br>
जो भी उस जाने-जहाँ ने लिख दिया, मैंने किया<br><br>
वो ठहरता क्या कि गुजरा तक नहीं जिसके लिया<br>
घर तो घर, हर रास्ता, आरास्ता मैंने किया<br><br>
मुझपे अपना जुर्म साबित हो न हो लेकिन मैंने<br>
लोग कहते हैं कि उसको बेवफ़ा मैंने किया<br><br>

'''नामानूस''' - अजनबी, '''आरास्ता''' - सजाया<br>
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