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21:44, 20 जनवरी 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अशोक शाह
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<poem>
जलता है हर साल रावण
अब तक मरा नहीं
बारी है अब अपनी
जला के खुद को देखते हैं
कहीं हमीं
वही रावण तो नहीं
राज-लालसा खातिर
विभीषण बन बैठा हो
हमारी तृष्णा की भीतरी परतों में
-0-
</poem>