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कली बुराँस
चपल है मुस्कान
ये दिव्यनाद
'''नयनों का संवाद
अधर धरे
उन्मुक्त केश वरे
हुई विह्वल
इठलाती चंचल
आई ऋतु नवल।नवल'''।
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