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{{KKRachna
|रचनाकार=शील
|अनुवादक=
|संग्रह=लाल पंखों वाली चिड़िया / शील
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हमने उसूल नहीं रचे
उसूलों ने हमें रचा है ।
ऋतुओं ने ज्ञान दिया,
ऐसे जीओ, ऐसे चलो,
अन्धी शास्त्रीयता से —
काँटे उगे — कुचलो ।
मानव-मूल्यों के पाठ,
उसूलों के सबक —
सहेजते रहे
अपने हो के रहे ।
हमने उसूल नहीं रचे
उसूलों ने हमें रचा है ।
पतझर में झरे —
वसन्त में फूले-फले
मौसमों में जीतते रहे जीवन —
उसूल राही रहे ।
—
दिसम्बर 1988
</poem>
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|संग्रह=लाल पंखों वाली चिड़िया / शील
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हमने उसूल नहीं रचे
उसूलों ने हमें रचा है ।
ऋतुओं ने ज्ञान दिया,
ऐसे जीओ, ऐसे चलो,
अन्धी शास्त्रीयता से —
काँटे उगे — कुचलो ।
मानव-मूल्यों के पाठ,
उसूलों के सबक —
सहेजते रहे
अपने हो के रहे ।
हमने उसूल नहीं रचे
उसूलों ने हमें रचा है ।
पतझर में झरे —
वसन्त में फूले-फले
मौसमों में जीतते रहे जीवन —
उसूल राही रहे ।
—
दिसम्बर 1988
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