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Kavita Kosh से
मेरे संकेतों पर युग रूकते-चलते हैं
मानवता की रक्षा-हित निर्मित दुर्गों का
मैं भी इस इक छोटा-सा कर्मठ प्रतिहारी हूँ
अगणित तलवारों पर...