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|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
जो अपने आप से अपनी शिकायत करते रहते हैं।
वही किरदार की अपने हिफ़ाज़त करते रहते हैं ।।

वो हमसाया है बेशक पर करे है काम दुश्मन का,
समझता कुछ नहीं जब तक शराफ़त करते रहते हैं ।

बड़े बेशक हुए बच्चे मगर अब भी ये आलम है,
उन्हें गाहे-बगाहे हम हिदायत करते रहते हैं ।

वो मालिक है हमें कुछ दे न दे ये मस्लहत उसकी ,
इबादत काम है अपना इबादत करते रहते हैं ।

ज़रा से फ़ायदे के वास्ते हम भूल कर सब कुछ,
'असर' रिश्तों की आए-दिन तिजारत करते रहते हैं ।
</poem>