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Kavita Kosh से
शोर बन्द हो गया । मंच पर मैं हाज़िर हूँ,
दरवाज़े के पास खड़ा हो सोच रहा हूँ,
दूरागत प्रतिध्च्वनियाँ प्रतिध्वनियाँ सुनता,
मेरे जीवन में जो कुछ घटनेवाला है ।