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{{KKRachna
|रचनाकार=शंख घोष
|अनुवादक=मीता दास
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तब क्या यह निश्चित हो गया कि दसों उँगलियों से तुम
धागों के सहारे मुझे लटकाओगे
और मुझे गाना पड़ेगा हुक़्मानुसार गीत ?
तब क्या यह निश्चित हो गया कि बरसते पानी में भी रथ के मेले में
तुम सब के सामने बुलाओगे मुझे, "आओ
मौत के कुएँ में कूद जाओ ?"
मेरे क़दम - क़दम पर थी मुक्ति, और सहज ही थी मेरी आवाजाही
इस गली से उस गली
मेरा चलना था मेरा निजी, इसलिए किसी में मुझे कभी नही लिया मोल
ऐसे वक़्त में तुम दूषित हाथ बढ़ाकर जो चाहो वह स्वाधीनता से
खींच रहे हो अदृश्य से
तब क्या यह निश्चित हो गया कि मेरे ही मुँह में ठूँस दोगे
आदिमता व नग्नता के प्रतिमान ?
—
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : मीता दास'''
</poem>
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तब क्या यह निश्चित हो गया कि दसों उँगलियों से तुम
धागों के सहारे मुझे लटकाओगे
और मुझे गाना पड़ेगा हुक़्मानुसार गीत ?
तब क्या यह निश्चित हो गया कि बरसते पानी में भी रथ के मेले में
तुम सब के सामने बुलाओगे मुझे, "आओ
मौत के कुएँ में कूद जाओ ?"
मेरे क़दम - क़दम पर थी मुक्ति, और सहज ही थी मेरी आवाजाही
इस गली से उस गली
मेरा चलना था मेरा निजी, इसलिए किसी में मुझे कभी नही लिया मोल
ऐसे वक़्त में तुम दूषित हाथ बढ़ाकर जो चाहो वह स्वाधीनता से
खींच रहे हो अदृश्य से
तब क्या यह निश्चित हो गया कि मेरे ही मुँह में ठूँस दोगे
आदिमता व नग्नता के प्रतिमान ?
—
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : मीता दास'''
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