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कठिन अग्नि-समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!
 
हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
शून्य मेरा जन्म था
अवसान है मूझको मुझको सबेरा;
प्राण आकुल के लिए
संगी मिला केवल अँधेराअंधेरा;
मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!
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