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पूर्णविराम / रमेश तैलंग

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<poem>
अम्मां, अपनी गली में है एक छेड़ूराम

आज धर दिया मैंने धप्पा
भागा करता पप्पा पप्पा
मैं भी गाती लारालप्पा
दे कर आई उसको अच्छा -सा इनाम.

छोटी हूँ पर इतनी भी ना
सुनूँ मनचलों की, बोलूँ ना
आना जाना मैं रोकूँ ना
आए-गए बिना चलता है किसका काम?

भैया, भैया, बोलो उनको
फिर भी समझ न आए उनको
गुस्सा है अब बहुत अपुन को
कोमा से तो भला, लगा दूँ पूर्णविराम !
</poem>
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