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{{KKRachna
|रचनाकार=रवि सिन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
लोग कहते हैं मिरा वक़्त नहीं आएगा
और ये भी कि मिरा दौर गुज़र जाएगा
मुन्तज़िर कौन नहीं है किसी मुस्तक़बिल का
मेरे ख़्वाबों पे मगर दोष धरा जाएगा
किसके कहने के मुताबिक़ है चलन दुनिया का
हर पयम्बर यहाँ नाकाम ही कहलाएगा
बस मुहब्बत के सहारे ही चले आए थे
अब ये सुनते हैं ये दावा हमें मरवाएगा
जंग ये है कि जगाना है ज़माने का ज़मीर
कोइ मक़्तूल ही क़ातिल को हरा पाएगा
गो त'आरुफ़ से तो इनकार करेंगी नस्लें
बे-तख़ल्लुस मगर दीवान पढ़ा जाएगा
</poem>
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लोग कहते हैं मिरा वक़्त नहीं आएगा
और ये भी कि मिरा दौर गुज़र जाएगा
मुन्तज़िर कौन नहीं है किसी मुस्तक़बिल का
मेरे ख़्वाबों पे मगर दोष धरा जाएगा
किसके कहने के मुताबिक़ है चलन दुनिया का
हर पयम्बर यहाँ नाकाम ही कहलाएगा
बस मुहब्बत के सहारे ही चले आए थे
अब ये सुनते हैं ये दावा हमें मरवाएगा
जंग ये है कि जगाना है ज़माने का ज़मीर
कोइ मक़्तूल ही क़ातिल को हरा पाएगा
गो त'आरुफ़ से तो इनकार करेंगी नस्लें
बे-तख़ल्लुस मगर दीवान पढ़ा जाएगा
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