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मिट्टी-सरकण्डों की छोटी कुटिया एक बनाऊँगा;
तरु पर एक शहद का छत्ता, मटर सतर नौ माटी में –
यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर -गुंजित घाटी में । वहीं मिलेगी शान्ति टपकती मन्द-मधुर बौछारों से,प्रात-उषा के अवगुण्ठन से, झींगुर की झनकारों से;रात सितारों वाली होगी, स्वर्ण किरण वाली दोपहर,सन्ध्या का आँगन भर देंगे उड़ती चिड़ियों के स्वर-पर । अभी उठूँगा औ’ जाऊँगा, क्योंकि सदा दिन हो या रातमुझे सुनाई देती रहती, लहरों से कूलों की बात;चलता रहूँ सड़क पर, चाहे खड़ा रहूँ मैं पटरी पर,उनका स्वर मुखरित होता है मेरे मानस के अन्दर । अभी यहाँ से उठकर चलकर इनिसफ़िरी को जाऊँगा,मिट्टी-सरकण्डों की छोटी कुटिया एक बनाऊँगा;तरु पर एक शहद का छत्ता, मटर सतर नौ माटी में –यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर-गुंजित घाटी में ।
'''मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित'''
William Butler Yeats
The Lake Isle of Innisfree
 
I will arise and go now, and go to Innisfree,
While I stand on the roadway, or on the pavements grey,
I hear it in the deep heart’s core.
 
I will arise and go now, and go to Innisfree,
And a small cabin build there, of clay and wattles made;
Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee,
And live alone in the bee-loud glade.
</poem>
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