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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार सम्पादन }} <br /> जिंदगी ने कर लिया स्...
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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार सम्पादन
}}
<br />
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,<br />
अब तो पथ यही है|<br /><br />
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,<br />
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,<br />
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,<br />
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,<br />
अब तो पथ यही है |<br /><br />
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,<br />
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,<br />
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए, <br />
आज हर नक्षत्र है अनुदार,<br />
अब तो पथ यही है| <br /><br />
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,<br />
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,<br />
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,<br />
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,<br />
अब तो पथ यही है |<br /><br /><br />
--[[सदस्य:Saurabh2k1|सौरभ]] ०४:५३, १४ नवम्बर २००८ (UTC)
{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार सम्पादन
}}
<br />
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,<br />
अब तो पथ यही है|<br /><br />
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,<br />
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,<br />
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,<br />
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,<br />
अब तो पथ यही है |<br /><br />
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,<br />
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,<br />
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए, <br />
आज हर नक्षत्र है अनुदार,<br />
अब तो पथ यही है| <br /><br />
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,<br />
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,<br />
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,<br />
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,<br />
अब तो पथ यही है |<br /><br /><br />
--[[सदस्य:Saurabh2k1|सौरभ]] ०४:५३, १४ नवम्बर २००८ (UTC)