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Kavita Kosh से
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
हैं फूल रोकते, काटें कांटे मुझे चलाते
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते
सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं