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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
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<poem>
बड़ी मुश्किल से छोड़ पाया हूँ
मैं तुम्हें,
जब तुम आ रही हो मेरे भीतर
निर्मलता के साथ, या काँपते हुए,
या व्याकुल
या मेरे द्वारा ही ज़ख़्मी,
ज्योंही
तुम्हारी आँखें पहुँचती हैं पास
ज़िन्दगी के इस उपहार के —
मैं तुम्हें देता जाता हूँ
असमाप्त...

मेरी जाँ !
हमने पाया था एक दूसरे को प्यासा
और पी गए एक दूसरे के
समस्त पानी और ख़ून

मेरे प्यार !
हमने पाया था एक दूसरे को भूखा
और हम काटते गए एक दूसरे को
जैसे काटती है आग...
छोड़कर घाव

लेकिन बाबू !
सुनो, तुम मेरा इन्तज़ार करना
मेरे लिए बचाकर रखना अपनी मिठास
और मैं भी तुम्हें
दूँगा एक गुलाब ।

'''तनुज द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित'''
</poem>
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