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<poem>
'''इस कविता के दो रूप मिलते हैं। यह रूप बच्चों की हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में प्रकाशित होता रहा है।'''

कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली — ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे - आगे ?
इन्हें तोड़ दो
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो,

सुनकर बोलीं और-और
कठपुतलियाँ
कि हाँ,
बहुत दिन हुए
हमें अपने मन के छन्द छुए ।

मगर ...
पहली कठपुतली सोचने लगी —
ये कैसी इच्छा
मेरे मन में जगी ?
</poem>
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