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'''वीत्येज़स्लव नेज़्वल चेक भाषा के एक मशहूर कवि और अनुवादक हैं। 1958 में नेज़्वल का देहान्त होने के तीन साल बाद इओसिफ़ ब्रोदस्की ने उनको याद करते हुए यह कविता लिखी थी। कार्लोव पुल प्राग की ब्लतवा नदी पर बना हुआ है, जो पुराने शहर को नए प्राग शहर से जोड़ता है ।'''

कार्लोव पुल पर तुम फिर से मुस्कराओगे
हर रात जीवन की ओर वापिस लौट आओगे
प्राग की ट्राम के डिब्बे में बैठकर
नेकी को तो जाना नहीं, बदी को न भूल पाओगे ।

तुम फिर-फिर उतर जाओगे कार्लोव पुल पर
और कहोगे कि तुम जाना चाहते हो फिर वहाँ
शहर भर की बिजलियाँ तुम्हारी हलकी गुद्दी पर
कड़कती हैं, दमकती हैं और चमकती हैं जहाँ

तुम फिर-फिर उतर जाओगे कार्लोव पुल पर
और राहगीरों के चेहरों को ग़ौर से देखोगे
जवाब दोगे इस सवाल का कि क्या बजा है
लेकिन पुल पर तुम ख़ुद से कभी न मिलोगे

कार्लोव पुल पर तुम फिर से याद करो
कि सुबह के घोड़े तुम्हें उड़ा ले जाते हैं
ख़ुद से ही कहना कि वापस ज़रूर आना है
कहना कि तुम्हें अब विदेश चले जाना है

जब वापिस लौटोगे तुम फिर से स्वदेश
ब्लतवा में तैरेगा पीला जलयान आभासी
उसे देख कार्लोव पुल पर तुम मुस्कराओगे
और चीख़कर मुझे बताओगे, दूर हुई उदासी

मैं कहूँगा कुछ, पर तुम मेरी बात नहीं सुनोगे
न चीख़ोगे, न शब्द ही कोई लिखोगे
अपनी मृत आँखों को तुम कभी नहीं खोलोगे
और मेरी जीवन्त भाषा भी अब नहीं समझोगे

कार्लोव पुल पर अब दूसरे ही चेहरे हैं
देखो, देखो तुम्हारे बिन भी गूँज रहा है जीवन
बुदबुदा रहा है, गुनगुना रहा है पल-पल ...
मौत की तरह, वो भी जी रहा चिर-जीवन

'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Иосиф Бродский
Витезслав Незвал

На Карловом мосту ты улыбнешься,
переезжая к жизни еженощно
вагончиками пражского трамвая,
добра не зная, зла не забывая.

На Карловом мосту ты снова сходишь
и говоришь себе, что снова хочешь
пойти туда, где город вечерами
тебе в затылок светит фонарями.

На Карловом мосту ты снова сходишь,
прохожим в лица пристально посмотришь,
который час кому-нибудь ответишь,
но больше на мосту себя не встретишь.

На Карловом мосту себя запомни:
тебя уносят утренние кони.
Скажи себе, что надо возвратиться,
скажи, что уезжаешь за границу.

Когда опять на родину вернешься,
плывет по Влтаве желтый пароходик.
На Карловом мосту ты улыбнешься
и крикнешь мне: печаль твоя проходит.

Я говорю, а ты меня не слышишь.
Не крикнешь, нет, и слова не напишешь,
ты мертвых глаз теперь не поднимаешь
и мой, живой, язык не понимаешь.

На Карловом мосту — другие лица.
Смотри, как жизнь, что без тебя продлится,
бормочет вновь, спешит за часом час…
Как смерть, что продолжается без нас.

1961 г.
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