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{{KKRachna
|रचनाकार=शील
|अनुवादक=लाल पंखों वाली चिड़िया / शील
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं देख रहा हूँ ...
उनकी - अपनी आँखों की समानता ।
विचारों की वाहक ...
एक दृष्टि ।
असंख्य आँखों में विभाजित
एक संकल्प –
युद्धोन्मादी शासकों के विकल्प का –
चेतना का उपजाऊ – एक शब्दकोष –
भावी सम्भावनाओं का ।
मैं देख रहा हूँ ...
उनकी - अपनी आँखों से –
धरती की सुन्दरता पर, पवन के संगीत पर,
अग्नि की ऊष्णता पर,
जल की तरंग पर,
माँ के स्तन में चुकुर-चुकुर करते –
शिशु की मुस्कान पर –
काली दुनिया के राक्षसी क्रिया-कलाप ।
मैं देख रहा हूँ ...
हथियारों की होड़,
अपनी ही हविश से बलात्कार करता –
उपनिवेशी आतंक ।
बौखलाए हुए गिद्धों की प्रेतलीला ।
मैं देख रहा हूँ ...
अपनी और उनकी आँखों में लिखा होता –
दूर - निकट के देशों का सन्देश ।
मैं देख रहा हूँ ...
दुनिया बदलने का साहसी एहसास ...
विवादों के घेरे तोड़ रहा है ।
सदी के गर्भ में पलती एक सदी ।
वर्तमान की मुण्डेरों से ...
झाँकता भविष्य ।
–
19 दिसम्बर 1988
</poem>
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मैं देख रहा हूँ ...
उनकी - अपनी आँखों की समानता ।
विचारों की वाहक ...
एक दृष्टि ।
असंख्य आँखों में विभाजित
एक संकल्प –
युद्धोन्मादी शासकों के विकल्प का –
चेतना का उपजाऊ – एक शब्दकोष –
भावी सम्भावनाओं का ।
मैं देख रहा हूँ ...
उनकी - अपनी आँखों से –
धरती की सुन्दरता पर, पवन के संगीत पर,
अग्नि की ऊष्णता पर,
जल की तरंग पर,
माँ के स्तन में चुकुर-चुकुर करते –
शिशु की मुस्कान पर –
काली दुनिया के राक्षसी क्रिया-कलाप ।
मैं देख रहा हूँ ...
हथियारों की होड़,
अपनी ही हविश से बलात्कार करता –
उपनिवेशी आतंक ।
बौखलाए हुए गिद्धों की प्रेतलीला ।
मैं देख रहा हूँ ...
अपनी और उनकी आँखों में लिखा होता –
दूर - निकट के देशों का सन्देश ।
मैं देख रहा हूँ ...
दुनिया बदलने का साहसी एहसास ...
विवादों के घेरे तोड़ रहा है ।
सदी के गर्भ में पलती एक सदी ।
वर्तमान की मुण्डेरों से ...
झाँकता भविष्य ।
–
19 दिसम्बर 1988
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