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|रचनाकार= सुरेन्द्र सुकुमार
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<poem>
लिख रहा हूँ जल अधर
पर फिर तुम्हारा नाम
हो गई घायल लहर फिर

बर्फ से मण्डित शिखर
फिर छलछलाए
और बादल के नयन
फिर डबडबाए
लिख रहा हूँ भोजपत्रों
पर तुम्हारा नाम
हो गई पागल सहर फिर

हो गई घायल लहर फिर

फिर चमकने लग गई है
एक धुन्धली आस
और अँजुरी में समाई
अनबुझी सी प्यास
लिख रहा हूँ शाल वन में
फिर तुम्हारा नाम
हो गई छागल लहर फिर

हो गई घायल लहर फिर
</poem>
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