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सत्ता से हम टक्कर लेते आये हैं
हम दरबारी ग़ज़ल कहें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
सेाने की भी जाँच कसौटी पर होती
हम हर बात पे हाँ बोलें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
अच्छे दिन के लिए तो की खातिर जाँ भी हाज़िर हैतिल- तिल करके रोज़ अंधे कूप में डूब मरें मंज़ू़र मंज़ूर नहीं
अश्कों से भी दिल के दिये दीप जला सकतेअँधियारे में पड़े रहें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
हम बोंलेंगे तभी ज़माना बोलेगा
इंतेज़ार अब और करें मंज़ू़र मंज़ूर नहीं ये हालात बदलने ही होंगे यारो और करें अब देर हमें मंज़ूर नहीं
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