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|रचनाकार=अलेक्सान्दर पूश्किन
|अनुवादक=वरयाम सिंह
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<poem>
इस संसार के सीमाहीन दुखभरे निर्जन प्रान्तर में
प्रकट हुए हैं रहस्यमय तीन झरने :
यौवन का झरना — फुर्तीला और बेचैन
तेज़ी से बह रहा है उफनता, चमकता ।
दूसरा झरना भरा है काव्य-प्रेरणाओं से
निर्जन प्रान्तर में प्यास बुझाता है निर्वासितों की,
और तीसरा अन्तिम झरना — विस्मृति का
सबसे ज़्यादा मीठा, वही बुझाता है आग हृदय की ।

'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''

</poem>
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