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शील
,|उपनाम=शील
|जन्म=15 अगस्त 1914
|जन्मस्थान=पाली गाँव, कानपुर, उत्तर प्रदेश
|मृत्यु=23 नवम्बर 1994
|कृतियाँ=अंगड़ाई, चरख़ाशाला, लावा और फूल, कर्मवाची शब्द हैं ये, लाल पंखों वाली चिड़िया (सभी कविता-संग्रह), प्रसिद्ध नाटक — किसान, तीन दिन तीन घर, हवा का रुख़। |विविध= शील जी सनेही स्कूल के कवि हैं वे आज़ादी के आन्दोलन में कई बार जेल गये । गान्धीजी के प्रभाव मे “चर्खाशाला” लम्बी कविता लिखी । व्यक्तिगत सत्याग्रह से मतभेद होने के कारण गान्धी का मार्ग छोड़ा तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए । “मज़दूर की झोपड़ी” कविता रेडियो पर पढ़ने के कारण लखनऊ रेडियो की नौकरी छोड़नी पड़ी। ’चरख़ाशाला’, ’अंगड़ाई’, ’एक पग’, ’उदय पथ’, ’लावा और फूल’ , ’कर्मवाची शब्द हैं ये’ और ’लाल पंखों वाली चिड़िया’ आपके काव्य-संग्रहों के नाम हैं। तीन दिन तीन घर, किसान, हवा का रुख़, नदी और आदमी, रिहर्सल, रोशनी के फूल, पोस्टर चिपकाओ आदि आपके नाटक हैं । इनके कई नाटकों को पृथ्वी थियेटर द्वारा खेला गया। इन नाटकों का प्रदर्शन रूस में भी हुआ, जिनमें राजकपूर ने अभिनय किया था।
|जीवनी=[[शील / परिचय]]
|अंग्रेज़ीनाम=Sheel