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|रचनाकार=शक्ति चट्टोपाध्याय
|अनुवादक=मीता दास
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<poem>
अपना महल छोड़कर क्यों झोपड़ी में जाना चाहते हो 
क्या तुम खुद भी जानते हो?
इसे क्या कहेंगे सिर्फ अनुभव या दरिद्रविलास!
कहीं ऐसा तो नहीं एक दिन महल का बाग़ छोड़कर 
निश्चिन्त से खड़े रहोगे गंगा के किनारे,
पगली हवाओं के मध्य। 

खड़े रहोगे... यह तो सिर्फ कहने की बात है,
सोये रहना होगा 
दोस्त या शत्रु सब को छोड़कर  
अकेले ही, किसी मोह-माया के बगैर 
हिरण्मय उजाला आएगा तुम्हारे स्वागत में। 
खुद तुम्हे भी नहीं पता
अपना महल छोड़कर क्यों झोपड़ी में जाना चाहते हो! 

जाना अच्छा है, और जा पाना भी अच्छा है! 
</poem>
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