भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=जयश्री पुरव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम कौन हो लड़की
अचानक प्रणाम करने चली आईं ?

सर पर तुम्हारे मैंने हाथ नहीं रखा
तुमसे भी ज़्यादा संकोच में भरकर
मैं आगे बढ़ गया तुम्हें छोड़कर
गंदी चप्पलें, पसीने की बदबू, मैला शरीर
लोगों से भरा हुआ हॉल, सभी देख रहे हैं,
इस बीच उसने अपने हाथों से छुआ मेरे पैरों को ।

आज घर लौटने के बाद भी मैं नहीं नहाया
उस स्पर्श को बनाए रखने के लिए
तुम्हारी हाथ की मुट्ठी में भरा हुआ है सरोवर
बदले में मैं और क्या दे सकता हूँ ?
सिर्फ़ लिखने के लिए दो चार पन्ने मेरा हुआ है आना !

सर्वनाश के इसपार
या उसपार देखा नहीं जा सकता
लेकिन मुझे दिखाई पड़ी लाल रोशनी में
खड़ी है वह – छन्दबद्ध –
वह कीर्तिनाशा
अनजान उस लड़की की आँखों में,

जिसने भेजी मुझे एक निमित्त को
बारिश में भीगी हुई बांग्ला भाषा ।

'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits