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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीता परशुराम मीता |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=अमीता परशुराम मीता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
लबों पे इश्क़ का दावा हज़ार दिल में शकूक1
क्या इस तरह भी मोहब्बत निभाई जाती है?
वो एक लम्हा जिसे आप ले के आये थे
वो एक याद न भूले भुलाई जाती है
अजीब उनको गिला है कहीं नहीं मैंने
वो दिल की बात जो दिल से निभाई जाती है
वो आग जिसकी तपिश रूह तक पहुँचती है
कोई बताए वो कैसे बुझाई जाती है
वो याद आज भी शादाब2 दिल के सहरा3 में
वो महकी याद न दिल से मिटाई जाती है
1. बहुत सारे शक 2. हरा-भरा 3. रेगिस्तान
</poem>
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|रचनाकार=अमीता परशुराम मीता
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|संग्रह=
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लबों पे इश्क़ का दावा हज़ार दिल में शकूक1
क्या इस तरह भी मोहब्बत निभाई जाती है?
वो एक लम्हा जिसे आप ले के आये थे
वो एक याद न भूले भुलाई जाती है
अजीब उनको गिला है कहीं नहीं मैंने
वो दिल की बात जो दिल से निभाई जाती है
वो आग जिसकी तपिश रूह तक पहुँचती है
कोई बताए वो कैसे बुझाई जाती है
वो याद आज भी शादाब2 दिल के सहरा3 में
वो महकी याद न दिल से मिटाई जाती है
1. बहुत सारे शक 2. हरा-भरा 3. रेगिस्तान
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